कमिश्नर के अधिकारों को छीनकर किया घोटाला ?

विधानसभा चुनाव से पहले तिकड़ी का कमाल
250 मीटर के दायरे में आने वाली खनन प्रक्रियाओं को जिले से मंजूरी
भोपाल। प्रदेश के उमरिया जिले में तैनात रहे नौकरशाहों ने विधानसभा चुनाव 2018 से ठीक पहले रेवड़ी तरह खदानें और रेत के भण्डारण बांटे, जिस पर आरोप भी लगे थे कि भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए चुनाव से पहले ऐसा किया गया, अब एक और मामला खुलकर सामने आया है, जिसमें कोई भी खदान या खनन प्रक्रिया अगर वन क्षेत्र से 250 मीटर के दायरे में आती है तो उसकी सशर्त मंजूरी संभागायुक्त द्वारा दी जाती है, लेकिन तात्कालीन कलेक्टर और खनिज अधिकारी ने कमिश्नर के अधिकार अपने पास रखकर खदानें और भण्डारण रेवड़ी की तरह बांट दिये, जानकार बताते हैं कि उमरिया में खुला-खेल-खेला गया, एक भण्डारण स्वीकृत करने के लिए 10 से 20 लाख रूपये चुनावी चंदे के नाम पर वसूल किये गये। प्रदेश में सबसे ज्यादा रेत भण्डारण उमरिया में स्वीकृत किये गये, अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक 37 की संख्या पहुंच गई है।
आर्माे ने बिछाई बिसात
विधानसभा चुनाव से पहले खनिज कार्यालय में पदस्थ सर्वेयर नर्बद सिंह आर्माे का तबादला पन्ना के लिए हो जाता है, लेकिन खदानों और भण्डारणों की दुकान खोलने के लिए तात्कालीन कलेक्टर माल सिंह और खनिज अधिकारी आर.के. पाण्डेय ने उसे कार्य मुक्त नहीं किया, क्योंकि उमरिया में बिना आर्माे के विभाग का पत्ता तक नहीं डोलता, कई खदानें और भण्डारणों को अनुमति देनी थी, जिसके लिए आर्माे को रोककर सारे काम करवाये गये और करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार किया गया। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता से पहले खनिज विभाग द्वारा जारी सूची में आर्माे का तबादला निरस्त कर दिया गया, अण्डर ट्रांसफर कर्मचारी से सारी फाईलों को डील करवाया गया और रकम की उगाही भी करवाई गई। सूत्र बताते हैं कि पूरा लेन-देन आर्माे के माध्यम से ही हुआ।
हाथ में ले लिये आयुक्त के अधिकार
नियमों के तहत किसी भी प्रकार की खनन प्रक्रिया अगर वन क्षेत्र से 250 मीटर के दायरें में आती है तो उसकी सुनवाई संभागायुक्त की अध्यक्षता में गठित कमेटी के द्वारा की जाती है, जिसके अध्यक्ष कमिश्नर होते हैं, सदस्य में मुख्य वन संरक्षक, खनिज विभाग के अधिकारी शामिल होते हैं, बैठक के बाद सशर्त अनुमति जारी की जाती है, उमरिया जिले की अगर बात की जाये तो बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व होने के चलते पूरा जिला राजपत्र के अनुसार या तो कोर जोन में है या बफर जोन में है। जिन भी स्थानों पर खदान या भण्डारण स्वीकृत किये गये, वह वन क्षेत्र के दायरे में हैं, रेंजर, एसडीओ, वनमण्डलाधिकारी के अलावा बांधवगढ़ के अधिकारियों के पास यह अधिकार ही नहीं है कि वे 250 मीटर के दायरे में अनापत्ति जारी कर दें, फिर भी पैसे के बल पर कागजी कोरम पूरा किया गया। तात्कालीन खनिज अधिकारी और तात्कालीन कलेक्टर ने सबकुछ जानने के बाद भी संभागायुक्त के अधिकार अपने हाथ में लेकर खदानों और भण्डारणों को हरी झण्डी दे दी। वहीं बांधवगढ़ के अधिकारियों ने विरोध करने के बजाय मौन स्वीकृति भी प्रदान कर दी।
उच्च स्तरीय जांच की मांग
उमरिया के मामले में राजधानी में पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयं सेवी संगठनों और उनके पदाधिकारियों के अलावा पर्यावरणविद ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार और प्रदेश के पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है, साथ में उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि पर्यावरण के साथ अधिकारियों ने खिलवाड़ करने का काम किया है, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के लिए भी रेत के कारोबार को घातक बताया है, केन्द्र और राज्य सरकार जल्द ही अगर कोई कारगम कदम नहीं उठाती तो वह न्यायालय का दरवाजा खट-खटायेंगे।
इनका कहना है…
अगर इस प्रकार की गड़बडिय़ां की गई हैं तो खनिज अधिकारी और कलेक्टर से रिपोर्ट तलब की जायेगी, गड़बड़ी मिलने पर सख्त कार्यवाही होगी।
विनीत कुमार ऑस्टिन
संचालक, भौमिकी तथा खनिकर्म, भोपाल