कांग्रेस का भाजपा और भाजपा का हुआ कांग्रेसीकरण

दल-बदल के दल-दल में फंसे प्रत्याशी
जिले की तीनो सीटो पर पुराना अंतर दोहराने में आ रहा पसीना
सात दिनो बाद लोकसभा सीट के लिए मतदान होना है, लेकिन मुख्यालय ही नही ग्रामीण अंचल में भी चुनावी माहौल जैसा कुछ दिख नही रहा है। प्रत्याशियों की दौड तो जारी है, लेकिन मतदाता इस बात को लेकर पसोपेश में है कि प्रत्याशी के साथ में जिस पार्टी का झंडा है वह उस पार्टी में कब आ गया। उसके साथ आये लोग पहले दूसरा झंडा लेकर आये थे अब क्या झंडे के साथ विचारधारा बदल गई, ऐसे में वोट जिसको पहले से सही बात रहे थे उसे दे या अब जिसे बात रहे उसे दे।
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अनूपपुर। लोकसभा चुनाव के मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है, मतदाता तो पूरी तरह से खामोश है, लेकिन प्रत्याशियों की सांसे तेज होने लगी है। खासकर मतदाताओं की खामोशी ईव्हीएम मशीनों में क्या गुल खिलायेगी, इसको लेकर प्रत्याशी और उसके समर्थक पशोपेश में है। वैसे तो संसदीय क्षेत्र में अनूपपुर जिले की तीन विधानसभा सीटे आती है, लेकिन इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि संसदीय सीट का अधिक समय तक प्रतिनिधित्व अनूपपुर के ही निवासियों ने किया है। वहीं बीते पांच से छ: माह पूर्व हुए विधानसभा चुनावों में आये नतीजे इस इतिहास को चुनौती दे रहे है। बीते चुनावों के दौरान जिले की तीनों सीटो पर कांग्रेस ने अपना कब्जा किया, इस कारण प्रदेश और कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने बीते आकडो को और अधिक बढाने की जिम्मेदारी जिले के तीनो विधायकों को दी है। इस जिम्मेदारी ने जिला कांग्रेस कमेटी सहित तीनो विधायकों के पसीने छुडा दिये है। यह भी माना जा रहा है कि यदि जिले के तीनो विधायक अपनी जीत के अंदर को भले ही आगे न बढा पाये, उसे दोहरा देते है तो कांग्रेस प्रत्याशी की जीत तय है, लेकिन सबसे बडा नुकसान कांग्रेस को इस बात का है कि भाजपा प्रत्याशी इसी जिले की है, ऐसी स्थिति में दूसरे जिले की प्रत्याशी को वोट दिलाना टेडी खीर साबित हो रही है।
दल के दलदल बने मुसीबत
कांग्रेस सहित भाजपा के प्रत्याशी दल बदलकर चुनाव मैदान में उतरे है। इस कारण दोनो ही प्रत्याशियो और उनके समर्थको को मतदाताओं के सवालो ने उलझा दिया है। मजे की बात तो यह है कि अनूपपुर जिले में कौन कांग्रेस का पदाधिकारी किसका काम कर रहा है, यह चर्चा का विषय बना हुआ है। दशको तक दलवीर राजेश नंदिनी गुट के लोग कांग्रेस के नाम पर वोट मांग रहे थे, लेकिन अब उनके मुंह से कांग्रेस की बुराई निकल रही है। मुख्यालय के जय पांडे के अलावा मुट्ठी भर और पुस्तैनी कांग्रेसी भाजपा का राग अलाप रहे है। वहीं पुष्पराजगढ से यह खबर आ रही है कि सुदामा सिंह और हीरा सिंह श्याम जैसे भाजपा नेता भले ही हिमाद्री का झंडा उठाकर चल रहे है, लेकिन उनकी कथनी और करनी में भारी फर्क है, यही स्थिति अनूपपुर के भाजपा नेता रामलाल रौतेल की भी है, जिन्हे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंंदी अनिल गुप्ता और ओमप्रकाश द्विवेदी के हाथो में दी गई कमान रास नही आ रही है। दूसरी तरफ मुख्यालय में इस बार एक नया समीकरण देखने को मिल रहा है। जिसमें रामलाल के खास गजेन्द्र सिंह का गुट अनिल गुप्ता व ओमप्रकाश द्विवेदी के गुट के साथ भाजपा का काम करते दिख रहा है, लेकिन इस गुट के एक और सदस्य व शासकीय कर्मचारी जीतेन्द्र सिंह, अजय ङ्क्षसह राहुल का नाम अलापते हुए कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में दिख रहे है। यह स्थिति सिर्फ मुख्यालय और पुष्पराजगढ की नही बल्कि पूरे जिले की है, जिसे मतदाता खामोश होकर भांप रहा है।
बिना मनाये, मान गया मनागंज
डेढ से दो दशक पहले कांग्रेस विधायक बिसाहूलाल के सबसे विश्वसनीय सिपहसलार जैतहरी मनागंज के भूपेन्द्र सिंह और उनके अनुजो की जब बिसाहूलाल के मंत्री पद से हटने के बाद खटपट हुई तो इन्होने दलबीर गुट की छाया ले ली, लेकिन इसके बाद इस पूरे गुट की नजदीकिया रामलाल से बढी, हालांकि भूपेन्द्र ङ्क्षसह आधिकारिक तौर पर भाजपा में कभी नही आये, लेकिन बीते जिला पंचायत चुनावो में वे भाजपा के अघोषित प्रत्याशी थे। भूपेन्द्र सिंह के साथ उनके भाई विनय सिंह, शैलेन्द्र सिंह, जीतेन्द्र सिंह व अन्य की जब बिसाहूलाल से दूरिया बडी तो बिसाहूलाल ने इनके सामने जैतहरी के जयप्रकाश को जिला अध्यक्ष बना दिया। लगभग एक से डेढ दशक से जयप्रकाश आज तक कांग्रेस के जिला अध्यक्ष है, इस दौरान बिसाहूलाल ने कभी भी भूपेन्द्र गुट को तवज्जो नही दी। इस दौरान यह जरूर हुआ कि बिसाहू ने जयप्रकाश के सर पर हाथ रखकर उसे भूपेन्द्र से बडा कद दे दिया। बीते विधानसभा चुनावों में पूरे भूपेन्द्र गुट ने बिसाहूलाल के खिलाफ खुलकर प्रचार किया, इस दौरान उन्होने अपने गाडफादर अजय ङ्क्षसह राहुल की भी नही सुनी, लेकिन उधर राहुल चुनाव हारे और इधर भूपेन्द्र का गुट रामलाल के साथ चुनाव हार गया। इस घटना को पांच से छ: माह ही हुए होंगे कि लोकसभा चुनाव सामने आ गये और इस बार बिसाहू और जिला कांग्रेस कमेटी के बिना मनाये ही भूपेन्द्र खुद मान गये और कांग्रेस के प्रचार में लग गये। हालाकि बिसाहू और जिला कांग्रेस कमेटी से उनकी दूरिया अब भी बनी हुई है।