नाबाद खिलाड़ी मैदान के बाहर@ दलबदलू के भरोसे भाजपा की जीत की राह आसन नहीं

(अनिल साहू+91 70009 73175)
उमरिया। मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए ! वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए..इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर ऐ बेखबर शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हे, शहडोल लोक सभा का हाल ये पंक्तिया बयाँ कर रही हैं जिस आदिवासी नेता ने दलवीर सिंह को लगातार 2 बार शिकस्त देकर राजनितिक जीवन का पटाक्षेप कर दिया था और उन्ही की बेटी हिमाद्रि सिंह ने मैदान के बाहर का रास्ता दिखा दिया शहडोल लोकसभा की जनता में यह चर्चा आम हो गई हैं की ज्ञान सिंह का यह राजनैतिक सन्यास हैं पर राजनैतिक पंडितों का मानना हैं की भाजपा संघठन को ज्ञान सिंह को आने वाले समय में कही न कही उपयोग कर सकता हैं खैर  बिसात बिछ चुकी है। शहडोल लोकसभा सीट पर भाजपा  और कांग्रेस  के बीच की जंग अब निर्णायक मोड़ पर आ पहुंची है।  भाजपा के पत्ते खुलते ही कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी जिसका मिला जुला असर सोशल मीडिया में देखने को मिल रहा हैं एक फेसबुक यूजर ने लिखा दोनों दलों के पैरा सूट  उम्मीदवारों का स्वागत है जिस तरीके से भाजपा संगठन ने अपने कद्दावर नेता ज्ञान सिंह से किनारा किया हैं उससे यही लगता हैं की भाजपा मोदी लहर के भरोशे 272 पार करने का मन बना चुकी हैं हालाकिं दोनों दलों के उम्मीदवारों के लिए यह एक खास चुनौती होगी की एक माह के भीतर अपने अपने दल के कैडर के कार्यकर्ताओं से संपर्क साध लें क्योंकि दोनों ही उम्मीदवार वर्तमान दलों में नए नए हैं पिता दलवीर सिंह और माँ राजेश नंदनी की पुत्री के छवि के इतर अभी हिमाद्री सिंह को लगातार दो चुनाव में हार का सामना करना पड़ा हैं हिमाद्री सिंह के ऊपर अपने आप को प्रूफ करने का एक मनोबैज्ञानिक दवाव भी बना हुआ हैं इसके इतर प्रमिला सिंह जिस दल से उम्मीदवार हैं उस दल की भी सरकार मध्यप्रदेश में हैं चार चार विधानसभा दोनों दलों के पास हैं खास बात यह हैं की प्रमिला सिंह ने विधानसभा चुनाव 2018 के पहले ही भाजपा पर उपेक्षा का आरोप लगा कर कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लीं थीं पर उसके बाद कांग्रेस मध्यप्रदेश में सत्ता में आई मतलब कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को प्रमिला सिंह तार्किक रूप से स्वीकार्य हैं और मत प्रतिशत में तो कांग्रेस भाजपा से आगे भी हैं हैं फिलहाल जनता के बीच एक्टिव न रहने का आरोप झेलने वाले सांसद को कभी भी 5 वर्ष का पूरा समय नहीं मिला हैं पर भाजपा संगठन ने चलता कर दिया हैं पर ज्ञान सिंह भाजपा के संकट मोचक के रूप में जाने जाते रहे हैं उनकी इसी छवि का जीता जागता उदाहरण इनके लगातार जीत के राजनैतिक करियर और 2016के उपचुनाव में देखने को मिला। कार्यकर्ता आधारित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा ने जिस तरह हिमाद्री सिंह को उम्मीदवार बनाया है उससे भाजपा का एक धड़ा स्वीकार नही कर पा रहा हैं और यदि ज्ञान सिंह पर्चा दाखिल करते हैं तो यह धड़ा निसंदेह गुपचुप तरीके से ही सही पर ज्ञान सिंह का प्रचार करेगा जिसकी संभावनाओं को नकारा नही जा सकता । आपको बता दें की ये वही हिमाद्री सिंह हैं जिन्होंने लोकसभा उपचुनाव 2016 में कांग्रेस की कैंडिडेट थी और शिवराज सिंह चौहान को खुला पत्र लिख कर चर्चा में आई थी जिस पत्र के माध्यम से शिवराज सिंह चौहान की बंद कमरे में हुई बात को जनता के सामने रख कर अपने पिता दलवीर सिंह के विरासत की दुहाई देती नजर आ रही थी खैर इसके इतर ज्ञान सिंह ने संगठन के विरूद्ध अपना मोर्चा खोल रखा हैं और शहडोल लोकसभा की टिकिट के अलावा फिलहाल कोई समझौता करने के मूड ने नजर नहीं आ रहे हैं
विजय संकल्प बाइक रैली भी बनी कारण
2 मार्च 2019 को देश भर में होने वाली विजय संकल्प बाइक रैली का शुभारंभ करने अमित शाह उमरिया आए थे उस रैली की तैयारी की जिम्मेदारी राज्यसभा सांसद को भाजपा संगठन ने सौंप रखी थी अजय सिंह ने पूरे जिले में ताबड़तोड़ बैठक करके कार्यक्रम को सफल बनाने का आश्वाशन संगठन को दिया पर कार्यक्रम में हुई भारी अव्यवस्थाओं ने तैयारी की सारी पोल खोल कर रख दी । सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय से इस राष्ट्रीय आयोजन को सफल बनाने के लिये तीस लाख रूपये आये थे।लेकिन पूरे देश को शुद्व जल पिलाने का अभियान में लगे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को एक गिलास शुद्व पानी भी नसीब नहीं हो सका भाषण देते केन्द्र की योजनाऐं गिनाते गिनाते उनका गला सुख गया था ,बोलने पर पानी दिया भी गया तो वो भी चुल्लू भर एक टूटे से कप मे मंच की व्यवस्था देख रहे रहे पूर्व जिलाध्यक्ष और विंध्य विकास के सदस्य आशुतोष अग्रवाल ने डिस्पोजल में राष्ट्रीय अध्यक्ष को पानी देने के लिए आगे बढ़े पर अमित शाह की नाराज भाव भंगिमाओ को देखकर ठिठक कर रह गए जबकि संगठन के द्वारा गिलास आदि सभी ऐसी सामग्रियों की व्यवस्था की गई थी जिले के एक सीनियर लीडर के द्वारा ऐसी गलती किसी भारी षडयंत्र का संदेश देती हुई प्रतीत होती हैं जिसे हाल ही में मीडिया ने सांसद ज्ञान सिंह ने आरोप लगते हुए कहा की मेरे लिए मेरे राजनीतिक विरोधियों के द्वारा षड्यंत्र रचा गया ताकि राष्ट्रीय अध्यक्ष नाराज हो जाएं और मेरी टिकिट काट दें।
सपा-बसपा और गोंडवाना ने नही की उम्मीदवार की घोषणा
शहडोल संभाग के इस ही वोल्टेज राजनीति में अन्य सभी दलों ने अभी तक चुप्पी साध रखी है मोदी लहर के भरोसे मध्यप्रदेश में 29 मव 29 सीटों को जीतने का दावा ठोकने वाली भाजपा को शहडोल लोकसभा में भारी झटके का सामना करना पड़ सकता हैं यदि लोकसभा शहडोल में ज्ञान सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल करते हैं तो सभी दलों में उनका समर्थन करने की बात कही है जिसका उल्लेख ज्ञान सिंह मीडिया के सामने कर चुके हैं । जिसका सीधा सीधा लाभ कांग्रेस को मिल सकता हैं ।
अन्य आदिवासी सीटों पर पड़ सकता हैं प्रभाव
पूर्व कैबिनेट मंत्री और वर्तमान सांसद ज्ञान सिंह ने टिकट मिलने से 3 दिन पहले कांग्रेस से भाजपा में आई हिमाद्री सिंह और संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है इसकी आग पूरे मध्यप्रदेश की आदिवासी सीटों को अपनी चपेट में लेती हुई दिखाई दे रही हैं भाजपा संगठन को मध्यप्रदेश में यह नही भूलना चाहिए की वर्तमान में कांग्रेस की सरकार काबिज है राजनैतिक पंडित बताते हैं की असर लोकसभा चुनाव में स्पष्ट देखने को मिलेगा । 45 सालों से सक्रिय राजनीति में रहे ज्ञान सिंह ने जिस तरह से संगठन पर शहडोल लोकसभा टिकिट को लेकर खरीद फरोख्त का आरोप लगाया है उससे भाजपा संगठन बैकफुट में आ गया हैं
क्या हैं जीत का समीकरण
शहडोल संभाग में पार्टी ने जिस पर लोकसभा का दांव खेला हैं उस अनूपपुर जिले में दिग्विजयसिंह सिंह के विरोध की लहर में 2003 में भाजपा ने तीनो विधानसभा सीटे जीती थी पर 2003 के बाद 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद एक भी सीट भाजपा के खाते में नही हैं साथ ही अभी हाल ही में भाजपा संगठन ने अनुपपुर में अपना नया जिलाध्यक्ष घोषित किया हैं जो इतने कम समय में संगठन को साध पाएगे यह भी बड़ा बड़ा सवाल हैं वर्तमान कांग्रेस के तीनो विधायक जिन्हें कमलनाथ ने अपनी अपनी विधानसभा जितने पर मंत्री पद का आश्वासन दिया है इससे हिमाद्री सिंह को अनूपपुर से बढ़त मिले इसकी संभावना लगभग कम ही हैं उमरिया जिले की दोनों विधानसभाओं और कटनी जिले की एक बड़वारा विधानसभा में लोकसभा में लीड में टिकी भाजपा की राह में ज्ञान सिंह आड़े आ रहे है क्योंकि इन तीन सीटों में ज्ञान सिंह का जबरजस्त प्रभाव है । शहडोल जिले में प्रमिला सिंह का प्रभाव भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी हैं उनके कांग्रेस जॉइन करने के बाद भाजपा का एक धड़ा संगठन से दूरियां बनाए हुए हैं और वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष लगभग नाम के जिलाध्यक्ष ही रह गए है अभी हाल ही में जिला संगठन के बगावती स्वर मीडिया में सुर्खिओं में छाए हुए हैं ऐसे में हिमाद्री सिंह की नैया मोदी लहर के भरोशे पर होगी की नही ये भाजपा नेताओ के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। हिमाद्री सिंह के पति नरेन्द्र मरावी को भी जनता नकारते चली आ रही हैं और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन थामे हुए भी हिमाद्री सिंह ने शिवराज सिंह चौहान के साथ मंच साझा किया था और खुलकर प्रचार भी तब भी अपने गृह विधानसभा में भी जीत न दिला सकी हिमाद्री सिंह अगर चुनाव हारती हैं तो उसमे गहनिया दामाद नरेंद्र मारावी की वर्तमान राजनैतिक असफलताओ को नही नाकारा जा सकता

ज्ञान सिंह का राजनैतिक सफऱ
जब दलवीर सिंह को दी शिकस्त- शहडोल लोकसभा सीट पर अधिकतर कांग्रेस का कब्ज़ा रहा हैं पर ज्ञान सिंह ने 1996 और 1998 के चुनाव में लगातार 2 बार दलबीर सिंह को शिकस्त देकर अपनी अपराजेय छवि का लोहा मनवाया हैं तब से अभी तक 2009 में ही कांग्रेस की राजेस नंदनी लोकसभा पहुच पाई थी ज्ञान सिंह से लगातार 2 बार चुनाव हारने पर दलवीर सिंह की राजनीति में भी लगभग विराम ही लग गया था
जब ज्ञान सिंह के भरोसे  शिवराज सिंह ने बचाई थी अपने साख : 2016 के उप चुनाव से पहले 2015 के एक और उपचुनाव जिसमे मध्यप्रदेश की रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी  और इसके प्रत्याशी एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की निर्मला भूरिया को 88,877 मतों के अंतर से पराजित किया था. कांतिलाल भूरिया को 535781 मत और  भाजपा की निर्मला को 446904 मत मिले थे
गौरतलब है कि भाजपा ने आजादी के बाद से मई 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में पहली बार रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी, जब उसके प्रत्याशी एवं कांग्रेस से भाजपा में आए दिलीप सिंह भूरिया ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था. एसी महत्वपूर्ण सीट को उप चुनाव में हारने के कारण शिवराज सिंह चौहान सीधे सीधे नरेंद्र मोदी के रडार में आ गए थे और शिवराज सिंह चौहान शहडोल लोकसभा सांसद दलपत सिंह परस्ते के निधन के बाद झाबुआ चुनाव जैसी पुनरावृति नही करना चाहते थे और उन्होंने अपने कैबिनेट के मंत्री को मैदान में उतार दिया और ज्ञान सिंह ने कांग्रेस की हिमाद्री सिंह को 57 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था
ज्ञान सिंह का राजनैतिक करियर
शिवराज सिंह चौहान की अंतिम सरकार में आदिम और अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री ज्ञान सिंह का जन्म 22 मई, 1953 को जिला उमरिया के ग्राम कोहका में हुआ था। हायर सेकेंडरी तक शिक्षित ज्ञान सिंह का व्यवसाय कृषि है। सिंह की अध्यात्म, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों में विशेष अभिरुचि है। ज्ञान सिंह ने वर्ष 1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में शामिल होकर राजनीति में प्रवेश किया। वर्ष 1968-70 में नौरोजाबाद विधानसभा क्षेत्र के संगठन मंत्री, वर्ष 1971-72 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जिला शहडोल के महामंत्री एवं वर्ष 1972-74 में प्रदेश कार्य समिति के सदस्य रहे। ज्ञान सिंह वर्ष 1977 में छठवीं विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए एवं राज्य मंत्री, योजना तथा सांख्यिकी विभाग बने। वे वर्ष 1980 में क्षेत्रीय भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष रहे। ज्ञान सिंह वर्ष 1980 में सातवीं विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वर्ष 1980-90 में भाजपा जिला शहडोल की कार्य समिति के सदस्य एवं जिला उपाध्यक्ष तथा प्रदेश कार्य समिति के सदस्य रहे। सिंह वर्ष 1990 में नौवीं विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तथा वन राज्य मंत्री तथा बाद में राज्य मंत्री, जेल विभाग रहे। ज्ञान सिंह वर्ष 1993 में दसवीं विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए एवं विभिन्न विभागीय परामर्शदात्री समितियों के सदस्य रहे। वे वर्ष 1996 में ग्यारहवीं एवं 1998 में बारहवीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तथा ऊर्जा, इस्पात एवं कोयला विभाग की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। वर्ष 1967 एवं 1977 में क्रमश: ज्ञान पुडिय़ा एवं जनता का डाकिया पुस्तक प्रकाशित हुईं। सिंह सन् 2003 में बारहवीं विधानसभा तथा वर्ष 2008 में बांधवगढ़ से तेरहवीं विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। ज्ञान सिंह दिसम्बर 2013 में उमरिया जिले के बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र से पुन: चतुर्दश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। उन्होंने 21 दिसम्बर 2013 को केबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली।

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