वनों की रक्षा और सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी

(रामनारायण पाण्डेय+91 99938 11045)
शहडोल। वन वृत्त में आने वाले वनमण्डल शहडोल, वनमण्डल उमरिया, उत्तर शहडोल, दक्षिण शहडोल एवं अनूपपुर चारो ओर से संरक्षित क्षेत्रों से घिरे हैं, जहां सामान्य वनमण्डल की प्रबंधन पद्धति से, वन एवं वन्यजीवों का संरक्षण एवं संवद्र्धन किया जा रहा है। जनजातीय सांस्कृतिक बहुलता को समेटे हुए यह क्षेत्र वन प्राणियों के गलियारे के रूप में चिहिन्त है। बांधवगढ़, संजय गांधी टाईगर रिजर्व, पनपथा एवं संजय डुबरी, अचानकमार अमरकंटक, बायोस्फियर रिजर्व एवं कान्हा, पन्ना कॉरीडोर में वनप्राणियों का आवगमन व स्वतंत्र विचरण इस क्षेत्र की जैव विविधता को राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परिभाषित करता है। इस प्रकार शहडोल संभाग में मिलने वाली वनस्पतियों एवं वन्यजीव इस क्षेत्र की पहचान बनकर हम सबको गौरान्वित करती है।
सैटेलाईट के माध्यम से वनों पर पैनी नजर
वर्तमान में जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे हमारे, प्रचुर जैवविधिता पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की संभावना है, यद्यपि म.प्र. शासन वन विभाग द्वारा फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया भारत कसरार से मिलकर सैटेलाईट के माध्यम से वनों पर पैनी नजर रखे हुए हैं। वनो पर प्रज्वलित होने वाली हर एक घटना की सूचना वन अधिकारियों एवं क्षेत्रीय स्तर को प्रदाय कर दी जाती है। क्षेत्रीय स्टाफ व अधिकारी उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए, अग्नि दुर्घटनाओं को नियंत्रत करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं, इसके बावजूद भी वनों पर लगातार अग्नि घटनाओं पर उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है।
आग देखने पर दे सूचना
अग्नि दुर्घटनाओं को नियंत्रित व समाप्त करने के लिये समस्त नागरिकों, वरिष्ठ नागरिकों, विद्यार्थियों, गैर सरकारी संगठनों, पर्यावरण प्रेमियों एवं आम जनमानस से अनुरोध है कि वनों पर आग देखने पर इसकी सूचना स्थानीय स्टाफ को देवें, साथ ही क्षेत्रीय स्टाफ के साथ मिलकर वनों को नष्ट होने से बचाये। आग बुझाने में ज्यादा से ज्यादा सहभागिता प्रदाय करने की कोशिश करें। यह हमारा न केवल संवैधानिक कत्र्तव्य है बल्कि एक विधिक उत्तर दायित्व भी है कि वन एवं वन जीवों का संरक्षण एवं संवद्र्धन करना। जनजातीय बाहुल्य इस क्षेत्र में ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था पर महुआ, तेन्दूपत्ता, अचार, हर्रा, बहेड़ा, आंवला आदि लघुवनोपज के संग्रहण उत्पादन पर निर्भरता रही है। वर्तमान में वनों में व वनों से लगे राजस्व क्षेत्रों में महुआ फूल का संग्रहण किया जा रहा है। इस दौरान महुआ पेड़ के नीचे साफ-सफाई करने के उद्देश्य से ग्रामीण भाईयों द्वारा आग लगा दी जाती है जो दावानल का रूप ले लेती है।
वनस्पतियां पर होता है असर
उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनों का क्षेत्र है, जिसमें फरवरी-मार्च तक पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं, व नई कोपले आती है ये सूखे पत्त कलान्तर में ज्वलनशील पदार्थ के रूप में बिखरे होते हैं। एक छोटी चिंगारी, वनों में आग का कारण बन जाती है। वनों पर लगने वाली आग का प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर तो है कि साथ ही साथ वन्यप्राणियों के आवास स्थल नष्ट हो जाने से मानव, वन्यप्राणी द्वंद की संभावनाएं बढ़ जाती है। क्षेत्र में बिखरी पड़ी वनस्पतिक विविधता पर विलुप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। अग्नि दुर्घटनों का सीधा असर भोज्य श्रंखला पर पड़ता है जिससे प्राथमिक उत्पादक बुरी तरह प्रभावित होते हैं। प्राथमिक उत्पादक अर्थात हरी भारी घास, पेड़-पौधे आदि के नष्ट होने पर उन निर्भर हिरण प्रजाति, एन्टीलोप प्रजाति एवं अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों पर जीवन यापन का खतरा बढ़ जाता है। शाकाहारी जीव विलुप्त या नष्ट होने पर उन पर निर्भर बाघ, तेन्दुओं एवं अन्य मांसाहारी जीव विलुप्त हो जाएंगे।
आग बुुझाने में करें मदद
इस प्रकार वनों में लगने वाली आग से संपूर्ण परिस्थितिक तंत्र को खतरा है साथ ही इस क्षेत्र के वनों से निकलने वाली नदियों जैसे नर्मदा, सोन, जोहिला, बनास, चूंदी आदि नदियों के प्रवाह की निरन्तरता को कम कर रही है। वन एवं वनो के आसपास निवासरत ग्रामीणों से अनुरोध है कि वनों को आग से बचाये, आग बुझाने में क्षेत्रीय स्टाफ की मदद करें साथ ही समस्त वन सुरक्षा समिति, वन ग्राम समिति एवं समस्त वनाधिकार पट्टाधारकों से अनुरोध है कि वन एवं वन्य जीवों को सुरक्षा प्रदान करें ताकि जैव विविधता का संरक्षण व संवद्र्धन किया जा सके और ये अब आप वनों में लगने वाली आग को बुझकर कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वनाधिकार अधिनियम 2006 के अन्तर्गत प्रदत्त अधिकारियों के साथ-साथ अधिनियम अन्तर्गत कर्तव्य भी दिये गये हैं, अत: अब समस्त अधिकार पत्र हितग्राही अपने कर्तव्यों अन्तर्गत वनों को आग से बचाये।