बड़ी खबर : करोडपती चपरासी और जीजा की लग्जरी गाडियो का सच..!

कहानी किस्मत की…..
शहडोल। 24 फरवरी 2023 को माननीय न्यायालय से स्थगन निरस्त होने से मुन्ना भइया का खेल-कूद फइनली
डिस्पोज हो गया है। मुन्ना भइया का बीस साल पुराना भृष्टाचार का जहाज डूबने लगा है। कहते है जब जहाज डूबता
है तो सबसे पहले चूहे भागते है भइया के डूबते जहाज से भागते हुए एक मोटे चूहे की दुम में लात रखते ही
चिचियाते हुए चूहे ने भइया के करोडपती बहनोई का एक गुप्त राज उगला दिया। चूहे के अनुसार भइया के एक
दूर के बहनोई है मिस्टर ओम प्रकाश द्विवेदी जो बालिका छात्रावास बुढार मे चौकीदार है। इनका मासिक बेतन है
7 हजार रूपये महीना है लेकिन बहनोई कई लग्जरी एस.यू.बी. कारों के मालिक है। शहडोल के कमिश्नर,
कलेक्टर, सी.ई.ओ. एवं स्वयं डी.पी.सी. जिस गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाते है ये सभी गाडियां इनके
बहनोई साहब की है..!! चूहे की बात पर विश्वास नहीं हुआ, मैने चूहे को खींच कर दो चपत लगाई। चपत लगते
ही कलतरी चूहे ने गाडियों के नम्बर उगल दिए। चूहा बहुत डर गया रिरियाने लगा भइया को मत बताना मेरी
नौकरी खा लेंगे। भइया की और खबरे देने का वादा करने पर जब मैने चूहे को छोड़ा तो ऐसे भागा जैसे गधे के
सिर से सींग।
मैने जब गाडियो की सत्यता जानने के लिए आनलाइन रजिस्ट्रेशन की जांच की तो चूहे की खबर 100
टका सच निकली। संभागायुक्त साहेब जिस गाड़ी की सवारी कर रहे है वो गाडी टोयटा कम्पनी की इनोवा
क्रिस्टा है। इसका नम्बर MP18882799 है। पंजियन तिथि 13.12.2021 है। गाडी मालिक मुन्ना भइया के
चौकीदार बहनोई ओम प्रकाश द्विवेदी है। शहडोल कलेक्टर साहिबा टोयटा कम्पनी की इनोवा क्रिस्टा की सवारी
करती है। इसका नम्बर MP1873789 है। पंजियन तिथि 30.05.2020 है। गाडी मालिक मुन्ना भइया के चौकीदार
बहनोई ओम प्रकाश द्विवेदी है। इसे नगद राशि दे कर खरीदा गया है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत
शहडोल की गाड़ी महेन्द्रा कम्पनी की स्कार्पियों S1122 है जिसका नम्बर MP18CA6673 है। इसकी पंजियन तिथि
21.04.2022 है। गाडी मालिक मुन्ना भइया के चौकीदार बहनोई ओम प्रकाश द्विवेदी है। डी.पी.सी. मुन्ना भइया की
गाडी हुन्डई कम्पनी की क्रेटा है। जिसका नम्बर MP18CA1878 है। इसकी पंजियन तिथि 27.03.2019 है। गाड़ी
मालिक मुन्ना भइया के चौकीदार बहनोई ओम प्रकाश द्विवेदी है। इसे नगद राशि दें कर खरीदा गया है।
एक छात्रावास का चौकीदार जिसकी महीने की कमाई सात हजार रूपये महीना हो इन करोडो की
चमचमाती गाड़ियों का मालिक कैसे हो सकता है। जिले के आला अधिकारियों तक पहुच एवं गाड़ियों की सवारी
कराने के पीछे का माजरा क्या है, अबूझ पहेली थी। पहेलीं सुलझाने में साला, दिमाग का दहीं हो गया, तो मैने
पुनः उसी चूहे को पकड़ा। चूहा चिचियाते हुए बोला साहब गाडियो के असली मालिक तो मदन त्रिपाठी मुन्ना
भइया है, बहनोई तो बहाना है, आखिर भइया को अपना भ्रष्टाचार जो छुपाना है। अब कहानी सीसे की तरह साफ
थी। जिले में आते ही अधिकारियों को पटा कर उनसे चिपक जाने के लिए मुन्ना भइया इसी फेबीकोल का
उपयोग कर रहे थे। यह जोड इतना मजबूत देखा गया कि जिले से जाने के बाद भी भइया अधिकारी चिपके
रहते हैं। अधिकारी से प्रथम मुलाकात में ही भइया पूरी नम्रता से पूछते साहेब कौन सी गाडी चढेगे। पूछने पर
कई बार फस चुके है। एक समय ललित दाहिमा शहडोल कलेक्टर हुआ करते थे इनके पास थी बहनोई की क्रेटा
अब आए सतेन्द्र सिंह आदतन भइया ने पूछ लिया और फस गए साहेब ने माग ली इनोवा भइया भागे तत्काल
बहनोई को बुलाया और एक घंटे में नई चमचमाती इनोवा ले आए। एक बार तो गाड़ी के रंग मे ही फसे गए।
नए-नए आए एक साहेव से भइया ने मुस्कुराते हुए गाड़ी के बारे में पूछ भर लिया कि फस गए। साहेब ने सफेद
की जगह काली स्कार्पियों चढ़ने की फरमाइस कर दी। अब भइया हल्का सा मुस्कुराए एवं पूछने की अपनी आदत
पर बाद में बहुत पछताए। पर सहेव की इक्छा सर माथे पर सिद्धान्त के पुजारी भइया ने तुरंत बहनोई को आधार
कार्ड के साथ पकड़वाया एवं नई काली स्कार्पियों ले आए। भइया ने सोचा था काली दे कर सफेद ले जाऐगे
लेकिन ऐसा नही हुआ अब भइया की बची खुची हल्की मुस्कुराहट भी सपाट हो गई, ओठ से ओठ जुड़ गए।
सहेब के बगले में काली और सफेद दोनो गाडियां पार्क रहती है और भइया की पूछने की आदत पर आपस मे
बतियाती रहती है। अब भइया ने कसम खाई है कि सहबो से गाड़ी के बारे में कभी नहीं पूछेगे, लेकिन अब पूछने
लायक बचे कहा। किसी ने सच ही कहा है अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
एक चौकीदार के पास करोडों की गाडियाँ खरीदने के लिए धन कहा से आया, काले पैसों को सफेद
करने वाला कौन है, इन सब की जांच होनी चाहिए। पुलिस जांच करे ऐसी ब्यवस्था अधिकारी कर सकते है,
लेकिन मैं हमेशा की तरह अधिकारियों से इसकी माग नहीं करूंगा। पता नहीं क्यों इस प्रकरण में अधिकारियो को
घर्मसंकट में डालना मुझे ठीक नही लग रहा। हो सकता है कार्यवाही की मॉग न करने से ही किसी अधिकारी की
आत्मा जाग जाए क्योंकि अभी अधिकारी इतने महीन नहीं है कि उनसे कार्यवाही की माग करना बेमानी हो।
शेष अगले अंक में पढ़िए मन की बात……