जिला शिक्षा केन्द्र शहडोल के डी.पी.सी. का पता नही @ कार्यमुक्ति पर जारी स्थगन समाप्त होने से कार्यमुक्ति की स्थिति में है डी.पी.सी

शहडोल ।24 फरवरी को माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा मदन त्रिपाठी डी.पी.सी. का स्थगन
डिस्पोज करने के बाद से जिले का डी.पी.सी. कौन? इसके लिए अफवाहो का बाजार गर्म है। सूत्रों की माने तो
मुन्ना भइया की पहली पसंद थे सी.बी. शुक्ला ये 2011 से बी.आ.सी.सी. बुढार है। यद्यपि कलेक्टर द्वारा इन्हें बीआरसी पद से 20 जनबरी 2023 को हटा दिया गया है लेकिन मुन्ना भइया की कृपा से पद पर डटे है। सी.बी.
शुक्ला को डी.पी.सी. बनाने के लिए मुन्ना भइया द्वारा जोरदार प्रयास भी किया गया लेकिन विरोधी तबके के विरोध
से सफलता नहीं मिली। दूसरी पसंद इन्हीं के आफिस के ए.पी.सी. विनोद प्रधान थे। प्रधान पद से तो पात्र है।
लेकिन इनका विभाग आड़े आ गया। प्रधान जनजातीय कार्य विभाग के व्याख्याता है जिससे इन्हें शिक्षा विभाग मे
डी.पी.सी बनने की पत्रता नहीं है। कलेक्टर मुन्ना भइया की अनुशंसा के इन्तजार में है जिससे 5 दिनो से डी.पी.
सी. का पद रिक्त पड़ा है। एवं चर्चाओं का बाजार गर्म है। सभी की जुवान पर बस एक ही बात है मुन्ना भइया
नहीं तो उनका आदमी ही सही। मुन्ना भइया का आदमी ही बनेगा डी.पी.सी. कलेक्टर मैडम बिना भइया से पूछे
किसी को नहीं बनाएगी चाहे सालो पद रिक्त रहे, वैसे भी भइया अभी मुक्त नहीं हुए है इसलिए भुगतान का कार्य
तो करते ही रहेंगे।
राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल के पत्र दिनांक 12.04.2018 द्वारा मुन्ना भइया को पद से हटा दिया गया था।
कलेक्टर द्वारा इन्हें कार्य मुक्त कर जिला शिक्षा अधिकरी शहडोल को डी.पी.सी. का प्रभार दिया गया था। प्रभारी
ने 6 दिन कार्य किया लेकिन मुन्ना भइया स्थगन प्राप्त कर फिर से डी.पी.सी. बन गए एव स्थगन पर ही 4 साल
बने रहे। सूत्रों की माने तो उच्च न्यायालय जबलपुर के बकीलो की हडताल से मुन्ना भइया गच्चा खा गए नहीं तो
निचित ही कुछ लाटा-फांदा कर ही लेते। अप्रत्यासित रूप से पता नहीं कैसे 4 साल कुम्भकर्णी नीद सोया
नरेन्द्र मरावी भी जाग गया। जबलपुर न्यायालय में उपस्थित भी हो गया एवं पैरवी कर स्थगन डिस्पोज करा
दिया। स्थगन डिस्पोज की खबर मिलते ही मीडिया मे मामला गरमा गया बदनामी होते देख मुन्ना भइया ने स्वयं
स्थगन निरस्त कराने एवं स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने का दावा अखवारो मे ठोक दिया।  समाचार पत्र मे
विज्ञप्ति दे कर कोतमा विधान सभा के अपने कार्यकर्ताओं की भगदड को सम्हालने के लिए इन्हे भूमित करने का
दाव चला लेकिन नरेन्द्र मरावी पता नहीं कहा से न्यायालीन कार्यवाही का वीडियो ले आया एवं सोसल मीडिया मे
बायरल कर दिया जिससे मदन त्रिपाठी द्वारा स्वयं स्थगन निरस्त कराने तथा स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेने का दाव
उल्टा पड गया एवं एक बार पुनः मुन्ना भइया चारो खाने चित हो गए।
कलेक्टरो को संबोधित राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल के आदेश क्रमांक 6754 दिनांक 06.07.2012 में कलेक्टरो
को स्पस्ट निर्देश दिए गए है कि किसी भी दशा में डी.पी.सी. का पद रिक्त होन की स्थिति में इस पद का प्रभार
अनिवार्यतः जिला शिक्षा अधिकारी को सौपे जाने का निर्णय राज्य शासन द्वारा लिया गया है। अतः इसके अनुरूप
कार्यवाही तत्काल सुनिश्चित की जाय। जिले में विगत 5 दिनो से डी.पी.सी. का पद रिक्त है। कलेक्टर द्वारा मुन्ना
भइया का स्थगन समाप्त होने के बाद तुरंत प्रभार न बदले जाने से एक ओर माननीय न्यायालय के निर्णय की
अवमानना हो रही है दूसरी और राज्य शासन के निर्णय का पलन भी बाधित हो रहा है। सोसल मीडिया में मुन्ना
भइया द्वारा बैंकडेट से करोड़ों रूपयो का भुगतान करने एवं आफिस का रिकार्ड उठा ले जाने की बायरल खवरो
के पीछे की सच्चाई क्या है कौन जाने लेकिन बिना आग के धुआ नहीं उठता इस सच्चाई से भी इन्कार नही
किया जा सकता। वैसे भी यह सच्चाई किसी से छुपी नहीं है कि मुन्ना भइया को इस कार्य में महारत हासिल है।
मार्च के महीने में वित्तीय समायोजन एवं बोर्ड परीक्षाओ का सुचारू संचालन हो सके इसके लिए जिला कलेक्टर
को शीघ्र नियमानुसार जिला शिक्षा अधिकारी शहडोल को डी.पी.सी. का प्रभार सौपना चाहिए। अब देखना यह है
कि कलेक्टर की चलती है कि मुन्ना भइया की। यदि जिला शिक्षा अधिकारी को प्रभार नहीं मिलता तो पाठको को
स्वयं ही समझाना होगा कि किसकी चली और कितनी चली। पेश लगातार अगले अंक में।

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