पीएचडी प्रवेश परीक्षा को जयस ने की रद्द करने की मांग आईजीएनटीयू में फिर आदिवासी के छलावे का उठने लगे सवाल

संतोष कुमार केवट
अनूपपुर। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक का विवादो से गहरा नाता रहा है, प्रोफेसर हो या छात्र संगठन के कारनामे एक से एक सामने आ चुके है, इतना ही नही शिक्षा परिणामों और प्रवेश परीक्षाओं पर भी सवाल उठ चुके है, लेकिन वही ढाक के तीन पात के बराबर ही हर गया। एक बार फिर जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन ने महामहिम राष्ट्रपति के नाम एसडीएम पुष्पराजगढ को ज्ञापन सौपा है। इसके पहले भी मनावर विधायक डॉ. हिरालाल अलावा के द्वारा भी पत्र लिखकर आईजीएनटीयू के शोध प्रवेश परीक्षा में संविधान एवं संसद का उल्लघंन कर आरक्षण नियमों के खिलाफ जाकर आदिवासी एवं पिछडे छात्रों को वंचित किये जाने पर कार्यवाही करने की मांग की थी।
29 मार्च 2020 को था प्रवेश परीक्षा
आईजीएनटीयू के द्वारा पीएचडी प्र्रोग्राम वर्ष-2020-21 के लिए दाखिला सूचना 20 फरवरी 2020 को महत्वपूर्ण दिनांक जारी कर आवेदन फार्म के साथ परीक्षा तिथि घोषित किया था, जहां कई आदिवासी छात्रों को दरकिनार करते हुए मनमाने तरीके से प्रवेश में चयन करने के आरोप जयस संगठन ने लगाये है।
यह लिखा ज्ञापन में
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना देश के आदिवासी समुदाय के उच्च शिक्षा में उत्थान के लिए संसद के अधिनियम द्वारा की थी, विश्वविद्यालय की स्थापना के समय विश्वविद्यालय में आदिवासी छात्रों की भागेदारी 45 प्रतिशत के आसपास थी व इसमें देश के कोने-कोने से आदिवासी व आदिम आदिवासी समुदाय के छात्र अध्ययन करते थे परंतु वर्तमान 2021 में विश्वविद्यालय में आदिवासी छात्रों की संख्या 20 प्रतिशत के लगभग है, जिससे साफ होता है कि विश्वविद्यालय से आदिवासी छात्रों कि 25 प्रतिशत कमी हुई है। सत्र 2020-21 हेतु शोध प्रवेश परीक्षा हेतु विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें देश के जनजातीय क्षेत्रों में प्रवेश परीक्षा हेतु केंद्र विश्वविद्यालय द्वारा नहीं आवंटित किए गए जिससे कई योग्य आदिवासी व पिछडे समुदाय के विद्यार्थी प्रवेश फार्म भरने से वंचित रह गए। प्रवेश परीक्षा पोर्टल बंद होने के बाद फिर से दिनांक 31 अक्टूबर से 2 नवम्बर 2020 तक खोला गया जो कि अपने नजदीकी लोगों को प्रवेश परीक्षा फार्म भरवाने के लिए किया गया था।
महामहिम से मांगा न्याय
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा शोध प्रवेश परीक्षा हेतु विज्ञापन जारी किए जाने के लेकर इंटरव्यू तक आरक्षित सीटों का ब्यौरा नहीं दिया गया, जिससे आरक्षित वर्ग के छात्रों को अपने विभाग में शोध हेतु सीटें हैं या नहीं इसकी जानकारी नहीं मिल पाई जो कि आरक्षण के नियमों का उल्लंघन है व इससे भ्रष्टाचार होने की संभावना बढ गई है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ली गई ऑनलाइन मोड से प्रवेश परीक्षा में तकनीकी रूप से भी नकल किए जाने की संभावना थी जो कि हुई भीए जिससे अनेक विषयों में विद्यार्थियों ने उच्चतम अंक अर्जित किए जबकि अनेक योग्य व मैरिटधारी गोल्डमेडलिस्ट आदिवासी व पिछडे समुदाय के विद्यार्थी प्रवेश प्रक्रिया से बाहर हो गए। महामहिम से निवेदन करते हुए शोध प्रवेश परीक्षा में हुई अनियमितताओं के चलते प्रवेश प्रक्रिया को रद्द करके पुन: प्रवेश परीक्षा करवाई जाए, जिससे देश के आदिवासी व पिछडे समुदाय के छात्रों के साथ न्याय हो सके।