चौकीदार बहनोई के नाम चलवा रहे अफसरों की लग्जरी गाडिय़ां

दो दशकों तक अफसरों की सेवा कर भ्रष्टाचार के खूब रचे अध्याय
शुभम तिवारी
शहडोल। भइया का एक अध्याय तो ऐसा है जो लग्जरी कारों से जुड़ा है, इसमें अहम भूमिका में एक छात्रावास का
चौकीदार हैं जिसके नाम यह सारी लग्जरी गाडिय़ा हैं। उन कार सुविधाओं का उपयोग कमिश्नर, कलेक्टर और
सीईओ जिला पंचायत जैसे वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर कर रहे हैं। स्टोरी का ससपेंस अच्छे अच्छों का माथा पका रहा
था। मसला यह कि एक तो चौकीदार के पास इतने मंहगे और इतने सारे वाहन कै से हो गए और फिर चपरासी की
पहुंच चुन-चुन कर खास अफसरों तक कैसे हुई। बुढ़ार बालिका छात्रावास का चपरासी और इस अध्याय का एक खास
किरदार ओम प्रकाश द्विवेदी मुन्ना भइया का दूर का बहनोई है। बाद मेंं खुर्दबीन से पता चला कि वाहनों के असली
प्रोपाइटर तो मुन्ना भइया हैं, बेचारा बहनोई तेा केवल रिश्ते की कीमत चुका रहा है। पता चला कि बहनोई की नौकरी
भी मुन्ना भइया की मेहरबानी का नतीजा रही है।
यह रही वाहनों की सच्चाई
ऑनलाइन जब गाडिय़ों के रजिस्ट्रेशन की जांच की गई तेा बात सच निकली। संभागायुक्त जिस गाड़ी की सवारी कर
रहे हैं वो गाड़ी टोयटा कम्पनी की इनोवा क्रिस्टा है। इसका नम्बर एमपी 18882799 है। पंजियन तिथि 13 दिसंबर
2021 है। गाडी मालिक मुन्ना भइया के चौकीदार बहनोई ओम प्रकाश द्विवेदी हैं। शहडोल कलेक्टर साहिबा टोयटा
कम्पनी की इनोवा क्रिस्टा की सवारी करतीं हैं। इसका नम्बर एमपी 1873789 है। पंजियन तिथि 30 मई 2020 है।
गाड़ी मालिक ओम प्रकाश द्विवेदी हैं। इसे नगद राशि दे कर खरीदा गया है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला
पंचायत शहडोल की गाड़ी महेन्द्रा कम्पनी की स्कार्पियों एस 1122 है। जिसका नम्बर एमपी 18 सीए 6673 है। इसकी
पंजियन तिथि 21 अप्रैल 2022 है। गाड़ी मालिक ओम प्रकाश द्विवेदी है। डी.पी.सी. मुन्ना भइया की गाड़ी हुन्डई
कम्पनी की क्रेटा है। जिसका नम्बर एमपी18सीए1878 है। इसकी पंजियन तिथि 27 मार्च 2019 है। इसे भी नगद
राशि देकर खरीदा गया था।
इस तरह सामने आया सच
एक छात्रावास का चौकीदार जिसकी महीने की कमाई सात हजार रूपये महीना हो, इन करोड़ो की चमचमाती गाडिय़ों
का मालिक कैसे हो सकता है। जिले के आला अधिकारियों तक पहुच एवं गाडिय़ों की सवारी कराने के पीछे का माजरा
क्या है, अबूझ पहेली थी। पहेलीं सुलझाने में लोगों ने काफी दिमाग लगाया, सूत्र लगाए तब कहीं जाकर पता चला और
रिश्तों की डोर से एक कराह उभरी कि असली मालिक तो मदन त्रिपाठी मुन्ना भइया हैं, बहनोई तो बहाना है। आखिर
भइया को अपना भ्रष्टाचार जो छुपाना है। अब कहानी सीसे की तरह साफ थी। जिले में आते ही अधिकारियों को पटा
कर उनसे चिपक जाने के लिए मुन्ना भइया इसी फेबीकोल का उपयोग कर रहे थे।
गाडिय़ों से बात बनाना मंहगा भी पड़ा
भइया की आदत गाडिय़ां परोस कर अफसर को संतुष्ट रखना और भ्रष्टाचार की मलाई छानना थी। लेकिन यह आदत
कभी कभी उनके गले भी पड़ जाती थी। एक बार अधिकारी से प्रथम मुलाकात में ही भइया पूरी नम्रता से पूछ बैठे
साहेब कौन सी गाडी चढ़ेंगे। बात कलेक्टर सतेन्द्र सिंह के समय की है। आदतन भइया ने पूछ लिया और फंस गए।
साहेब ने माग ली इनोवा, भइया भागे तत्काल बहनोई को बुलाया और एक घंटे में नई चमचमाती इनोवा ले आए। एक
बार तो गाड़ी के रंग मे ही फंसे गए। नए-नए आए एक साहेव से भइया ने मुस्कुराते हुए गाड़ी के बारे में पूछ भर लिया
कि फंस गए। साहेब ने सफेद की जगह काली स्कार्पियों चढऩे की फरमाइस कर दी। अब भइया का मुख मलिन पड़
गया। भइया ने तुरंत बहनोई को आधार कार्ड के साथ पकड़वाया एवं नई काली स्कार्पियों ले आए। भइया ने सोचा था
काली दे कर सफेद ले जाएंगे लेकिन ऐसा नही हुआ। अब भइया की बची खुची हल्की मुस्कुराहट भी सपाट हो गई,
ओठ से ओठ जुड़ गए। सहेब के बंगले में काली और सफेद दोनो गाडियां पार्क रहती हैं। भइया सिर पीटते रहते हैं।
बेचारे अपना माल खिलाकर खुद अफसर का गच्चा खा रहे हैं।