…तो तृतीय स्मरण पत्र से जागेगा प्रशासन!

रसूख के बल पर बदला नदी का स्वरूप 

शहडोल। सरकारी जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराने में अफसरों का रवैया नहीं बदला है इसमें कहीं ना कहीं सरकारी नुमाइंदों से अवैध कब्जा को अनदेखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्रदेश के मुखिया अतिक्रमण विरोधी अभियान चलवा रहे हैं, वहीं कुछ सरकारी कर्मचारी शासकीय भूमि पर दिन रात हो रहे अवैध कब्जा को नजर अंदाज कर अपनी जेबों को गर्म करने में लगे हुए हैं, इससे अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद है। कुदरी के ग्रामीणों ने सांसद, प्रभारी मंत्री, विधायक, कमिश्नर, कलेक्टर, एसडीएम, एडीजी, पुलिस अधीक्षक सहित तहसीलदार को तृतीय स्मरण पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि पूर्व में की गई शिकायत पर त्वरित कार्यवाही करते हुए ग्रामीणजनों को उक्त व्यक्तियों एवं उनके द्वारा किये जा रहे कृत्यों से मुक्ति दिलाने के लिए कार्यवाही की जाये।
शिकायत में उल्लेख किया गया कि मध्यप्रदेश शासन के मंशानुरूप राजस्व की क्षति पहुंचाने, शासकीय जमीन एवं नदी पर अतिक्रमण करने वाले लोगों एवं उनके परिवार/ रिश्तेदारों के द्वाराा पुलिस विभाग की सेवा के दौरान उक्त कृत्यों में सहयोग करने तथा लोगों को डराने धमकाने का कार्य किया जा रहा है, जिससे निजात दिलाने एवं ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाये।

यह है मामला 

23 जनवरी को कलेक्टर कार्यालय में दी गई शिकायत में उल्लेख किया गया है कि ग्राम कुदरी कमला बाबू कालोनी निवासी तीन भू-माफिया रमेश तिवारी, नरेन्द्र शुक्ला, आशुतोष शुक्ला का कुर्सी एवं सरकारी संपत्ति से मोह नहीं छूट रहा है। शिकायतकर्ता लल्ली यादव, रामबाबू, रोहित, लालमन, भूरा सहित अन्य लोगों ने पोस्ट के माध्यम से भेजे गये शिकायत पत्र में उल्लेख किया कि रमेश तिवारी जून 2022 में सेवानिवृत्त हो रहे थे, अब संविदा पर कलेक्ट्रेट में पदस्थ हैं तो, वहीं नरेन्द्र शुक्ला कलेक्ट्रेट में सेवा निवृत्त बड़े बाबू एवं आशुतोष शुक्ला तहसील सोहागपुर में पदस्थ हैं। चूंकि ये सभी रसूखदार भी हैं और ऐसे पदों पर हैं, जहां ये अपनी मनमानी किसी भी तरह से कर सकते हैं, उसमें से मुख्यत: भूमि कब्जाना इनका पुराना कार्य है।
तिवारी जी के कारनामें
शिकायत में उल्लेख किया गया कि रमेश तिवारी टांकी नदी के बहाव की दिशा को मोडक़र प्लाट में रूपान्तिर करने का इनका कारनामा कुदरी के वर्तमान पटवारी आनंद मिश्रा के संज्ञान में भी है, परन्तु एक ओर जहां शासन पेड़, वन, तालाब, नदी इत्यादि संरक्षण की बात करती है तो, वहीं दूसरी ओर शासकीय विभाग में पदस्थ कर्मचारी अपने रसूखदारी के बल में नदी की दिशा बदल देते हैं और कोई कार्यवाही नहीं होती।
बेच दी व्यवस्थापन की भूमि
नरेन्द्र शुक्ला/ आशुतोष शुक्ला के कारनामें तो बुलंदियों को छू रहे हैं, अपने भाई के साथ मिलकर भूमि कब्जाना, व्यवस्थापन की भूमि को विक्रय करना इनका पेशा हो चुका है। अपने चचेरे भाई की जमीन छल-कपट द्वारा हड़पकर भोले-भाले लोगों को अपनी बताकर धोखाधड़ी का मामला संज्ञान में आया है, शिकायत में आगे उल्लेख किया गया कि पता चला है कि इनके द्वारा व्यवस्थापन की भूमि जिसको बेचने का अधिकार न होते हुए  भी इनके द्वारा बेचा गया अैर वर्तमान में अपने चचेरे भाई से न्यायालय में इसी भूमि के लिए हार का मुंह देखना पड़ा। इस प्रकार की धोखाधड़ी के बाद भी इन पर कोई कार्यवाही की उम्मीद नजर नहीं आती।
आम बात है विवाद और मारपीट
शिकायत में उल्लेख किया गया कि प्रतिदिन लोगों से विवाद-मारपीट इनके लिए आम बात है, क्योंकि पुलिस का साथ प्रशासन के तौर पर भले ही इनके साथ न हो पर पुत्र, दामाद और पुत्रवधू के रूप में सदैव आस-पास रहता है। नरेन्द्र शुक्ला के पुत्र लवकेश शुक्ला और दामाद देवेन्द्र पाण्डेय प्रधान आरक्षक कोतवाली शहडोल में पदस्थ हैं, पुत्रवधु श्रीमती ज्योति शुक्ला अनूपपुर जिले में टीआई है, जिसका भय सदैव नरेन्द्र शुक्ला द्वारा दिखाया जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि लवकेश शुक्ला शहडोल कुदरी के निवासी होते हुए भी लगातार वर्ष 2011 से शहडोल में ही कार्यरत हैं और पिता के अवैध कार्य में भरपूर साथ निभा रहे हैं। वहीं दामाद देवेन्द्र पाण्डेय द्वारा गृह निर्माण का कार्य निरंतर प्रगति पर है।
रसूखदारों के लिए नहीं नियम-कानून
शिकायकर्ता ने कलेक्टर के आवाक-जावक शाखा में दी गई शिकायत में उल्लेख किया कि तीन भू-माफिया की संपत्ति का ब्यौरा देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि आखिर लक्ष्मी इन पर इतना मेहबान कैसे है, वर्तमान मे करोड़ों की लागत से निर्मित भवन एवं अवैध संपत्ति इस बात का बयान देती है कि रसूखदारों पर कानून का कोई नियम लागू नहीं होता है, चाहे मामला नदी का रास्ता बदलने का हो या तालाब पर बाउण्ड्री कर पुलिस परिवार की धौंस दिखाकर अवैध कब्जा, निर्माण एवं मारपीट या भूमि क्रय-विक्रय का फर्जी मामला हो।
हो सख्त कार्यवाही
शिकायकर्ताओं ने शासकीय कर्मचारियों के काले कारनामों पर संज्ञान लेते हुए त्वरित कठोर कानूनी कार्यवाही की मांग की है, वहीं सोचनीय पहलू यह है कि अगर शिकायत में सत्यतता है तो, प्रशासन मूकदर्शक क्यों बना बैठा है, अगर शिकायत झूठी है तो, शिकायतकर्ताओं द्वारा कर्मचारियों को परेशान करने एवं झूठे मामले में फंसाने सहित अवैध संपत्ति की झूठी शिकायत करने के लिए ऐसे फर्जी शिकायतकर्ताओं पर कार्यवाही पुलिस एवं प्रशासन क्यों नहीं कर रहा है, इससे साफ जाहिर होता है कि अगर शिकायत सही है तो, दूसरे पक्ष को दुधारू गाय बना रखा है, वहीं अगर शिकायत गलत है तो, दूसरे पक्ष को मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है। वहीं अगर प्रशासन ने इस मामले में जांच की है तो, शिकायकर्ताओं को पूरे जांच अवगत कराया जाये, मामला चाहे जो हो, पोस्ट के माध्यम से भेजे गये तृतीय स्मरण पत्र ने प्रशासनिक कार्यशैली को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है।

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